यूनिसेफ के भारतीय प्रतिनिधि डॉ यसमीन अली हक का कहना है कि जैसे महामारी फैलती जा रही है, यह याद रखना बेहद जरूरी हो गया है कि हाथ धोना अब एक व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि सामाजिक अनिवार्यता है। ऐसे में हैरानी और चिंता वाली बात ये है अभी भी दुनिया में करोड़ों लोगों के लिए साफ पानी और साबुन से हाथ धोना एक सपने जैसा है। यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की साझा मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2019 के मुताबिक दुनिया में 300 करोड़ लोगों के पास हाथ धोने के लिए संसाधन नहीं है। यह संख्या दुनिया की जनसंख्या का 40 फीसदी है।